दिल्ली सरकार Vs LG: केंद्र ने SC में दाखिल की पुनर्विचार याचिका, जानिए इससे जुड़ी 10 बड़ी बातें
- दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर LG और अरविंद केजरीवाल सरकार की लड़ाई एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. सेवाओं पर दाखिल पुनर्विचार याचिका में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से खुली अदालत में सुनवाई की मांग की है. याचिका में कहा है कि प्राकृतिक न्याय के हित में ये जरूरी है.
- दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकार को लेकर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका में कहा है कि बड़ी बेंच के संदर्भ में उसके आवेदन पर विचार नहीं किया गया. इस मामले मे जो रिकॉर्ड कोर्ट के सामने रखे गए उनके त्रुटिपूर्ण होने की वजह से मामले पर विचार करने में विफल रहा है.
- राष्ट्रपति और उपराज्यपाल जो राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते है उनको लोकतांत्रिक प्रतिनिधियों के रूप में न मानना स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड के आधार पर त्रुटि दिखाई देता है.
- सेवाओं के मुद्दो पर केंद्र सरकार और संसद के कार्यों पर विचार किए बिना निर्णय देना भी रिकार्ड के आधार पर त्रुटिपूर्ण दिखाई देता है.
- सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले, जिसमें निर्वाचित सरकार की सर्वोच्चता के सिद्धांत पर जोर दिया गया ,जबकि 1996 के फैसले, जिसमें दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश के समान बताया गया था, के फैसलों में मतभेद की वजह से निर्णय की मांग की गई थी.
- सुप्रीम कोर्ट का मौजूदा फैसला 1996 के 9 जजों की बेंच के फैसले के विपरीत है. संसद का इरादा सेवाओं के मामले को केंद्र शासित प्रदेशों में लागू करने का नहीं है. इसी वजह से केंद्र शासित प्रदेशों में सेवाओं के मसले के लिए संविधान ने कभी अलग कैडर पर विचार नहीं किया है.
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि संविधान ने केंद्र शासित प्रदेशों में सेवाओं के मसले को लेकर एक कैडर पर कभी विचार नहीं किया है.
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात की अनदेखी की है कि दिल्ली प्रशासन के तहत कई अन्य पदों पर नियुक्ति या स्थानांतरण राष्ट्रपति द्वारा उपराज्यपाल के माध्यम से बनाए गए नियमों के अनुरूप किए जाते है.
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले में इस बात की उपेक्षा की है कि लोक सेवा आयोग के कार्यों को राजनीतिक कार्यकारिणी से नागरिक सेवाओं को अलग करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
- सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह से इस बात की अनदेखी की है कि लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक रूप से स्थापित संस्था है जिसके कार्य अनुच्छेद 323 में निर्धारित किए गए हैं, जो राजनीतिक कार्यपालिका से सिविल सेवाओं की नियुक्ति को अलग करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं. एक केंद्र शासित प्रदेश में लोक सेवा आयोग नहीं हो सकता क्योंकि यह भाग XIV की योजना के आधार पर तर्कसंगत नहीं होगा.
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